Tuesday, January 3, 2012

दो हाथ

कितने कीमती हैं ये दो हाथ.
जिसके पास नहीं हैं, वो ज्यादा अच्छे से समझता है इनकी औकात.
कितना खुबसूरत एवं अमूल्य उपहार है, ईश्वर के दिए ये दो हाथ.
कितनी बेजोड़ कृति है ये मानव, जिसको दिए हैं ईश्वर ने ये दो हाथ.
पवित्र कर्म करने को दिए हैं ईश्वर ने ये दो हाथ.
परन्तु, मानव के प्रयोग की छमता पर निर्भर करते हैं ये दो हाथ.
जिस तरह एक कन्या, जनम से बेटी, विवाह से धरमपतनी एवं संतानोत्पत्ति के बाद माँ कहलाती है,
उसी तरह कर्म के द्रष्टिकोण से ही मानव को भी विभिन्न रूपों में वर्गीकृत किया गया है.
जहाँ, शिल्पिकार अपने दो कर-कमलों से सुन्दर ईमारत का निर्माण कर देता है.
वहीँ, वैज्ञानिक इन दो हाथों के प्रयोग से विभिन्न वस्तुओं के गठजोड़ से नए-२ आविष्कार कर देता है.
जहाँ, एक माली अपने सुन्दर हाथों से विभिन्न प्रकार के पौधे लगता है,
जो बड़े होकर लोगों को छाया एवं अन्य प्राणदायक वस्तुएं प्रदान करते हैं.
वहीँ, कृषक के हाथों के स्पर्श-मात्र से धरती सोना उगलने लगती है.
जहाँ, एक कवि मन के अभेध रहस्यों को सुन्दर रत्नों से सिंचिं करता है.
वहीँ, एक लेखक इन दो हाथों से ही अनुपम साहित्य का सृजन करता है.
जहाँ एक कुम्हार इन दो हाथों से माती के साथ विभिन्न प्रयोग कर सुन्दर आकार प्रदान करता है,
वहीँ, एक मूर्तिकार इन दो हाथों से नेत्रों से ओझल न होने वाली मूर्तियाँ तराशता है.
जहाँ, एक न्रत्यांगना भरतनाट्यम, कत्थक आदि नृत्यों में इन दो हाथों की मन को मोह लेने वाली विभिन्न मुद्राओं से महफ़िल में समां बाँध कर भारतीय संस्कृति को उजागर करती है.
वहीँ, गुरुजनों के कर-कमलों के स्पर्श से भविष्य सुधर जाता है.
दो हाथों के प्रयोग से ही दुर्गम पर्वतों पर भी मार्ग बन जाता है.
जहाँ, एक नारी की हस्तक्रिया से सुन्दर गरम वस्त्रों का निर्माण हो जाता है.
वहीँ, दो हाथों से बने भिन्न-२ प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों से रसना को आनंद की अनुभूति होती है.
कितने अद्भुत प्रयोग हैं इन दो हाथों के, कितनी अनमोल कृति है ये दो हाथ.
इन कर-कमलों को करबद्ध कर ईश्वर को समर्पित हैं ये दो हाथ।

हमारे नए वर्ष का आगाज़ इसी कविता के माध्यम से हुआ है. इस कविता का उद्गम लौह्पत्गामिनी में यात्रा करते हुए सम्मुख बुनाई करती हुई महिला के दो सुन्दर हाथों से प्रेरित होकर हुआ.